गुट का

Gut Ka Gut

Posted in Literary बकवास by Sudhanshu on January 11, 2009

मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.

गुट के गुट ने ये ठान लिया
जो नींद में है वो जागेगा
हर ख्वाब को हक़ से मांगेगा
जो निपट अकेला चलता था
अब बन जाए वो भी गुट का
हम सब गुट के, गुट है गुट का.

मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम हैं गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.

तू आम सही आवाम तो है
कल का ही सही पैगाम तो है
पर नशे में देश जो लूट रहे
जाता उनका जाम तू है
अब छलक निकल जा बोतल से
तू तोड़ कांच, शीशा चटका
अब जाम नहीं अंजाम तू बन
ले पहन ले जामा इस गुट का

मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.

साईकिल का ब्रेक भी है गुटका
हाथों का टेक भी है गुटका
है कमल के खाते पर गुटका
हाथी के माथे पर गुटका
हर चरखे का बाना गुटका
हर ऐनक का ताना गुटका
गुटके की खडाऊं खट खट है
हर लाठी है स्याना गुट का.

हर मनु में जब होगा गुटका
ये देश जो एकाजुट होगा
हर सटके की तब फट लेगी
हर फटकेला भी सटकेगा

हम हैं गुट के, गुट है गुट का.

मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम सब गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.

One Response

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  1. Dhirendra kumar Sharma said, on September 16, 2010 at 11:11 pm

    Nice poem


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